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नारायणीयम्: एक दिव्य स्तोत्र

नारायणीयम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करता है। इसकी रचना 16वीं शताब्दी के महान संत मेल्पुथुर नारायण भट्टतिरी ने की थी।

शब्द का अर्थ

'नारायणीयम्' दो शब्दों से मिलकर बना है: 'नारायण' और 'ईयम्'। 'नारायण' भगवान विष्णु का एक नाम है, और 'ईयम्' का अर्थ है "यह"। इसलिए, 'नारायणीयम्' का अर्थ है "भगवान विष्णु से संबंधित यह स्तोत्र"।

संरचना और विषय वस्तु

नारायणीयम् में 1032 श्लोक हैं, जो 100 अध्यायों में विभाजित हैं। प्रत्येक अध्याय में भगवान विष्णु के एक विशेष गुण या अवतार का वर्णन किया गया है। स्तोत्र में वेदों, उपनिषदों और पुराणों से ली गई पौराणिक कथाओं और दार्शनिक विचारों को भी शामिल किया गया है।

narayaneeyam in sanskrit

महिमा और महत्व

नारायणीयम् को सर्वाधिक पूजनीय वैष्णव स्तोत्रों में से एक माना जाता है। यह भक्तों को भगवान विष्णु के साथ आध्यात्मिक संबंध स्थापित करने में मदद करने के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि जो लोग नियमित रूप से नारायणीयम् का पाठ करते हैं वे सौभाग्य, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त करते हैं।

प्रमुख श्लोक

नारायणीयम् प्रसिद्ध श्लोकों की एक श्रृंखला के लिए प्रसिद्ध है, जो भगवान विष्णु के गुणों का वर्णन करते हैं:

  • श्लोक 1: "नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् | देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ||"
  • श्लोक 22: "अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड नायक राज राजेश्वर | अनन्त कोटि सूर्यप्रभमण्डलाभास्वरम् ||"
  • श्लोक 47: "हरिः ॐ ब्रह्मा हरिः इन्द्रः हरिः सोमो हरिः पिता | हरिः पुत्रः हरिः बंधुः हरिरेव परायणम् ||"
  • श्लोक 99: "यस्य स्मरण मात्रेण जन्मसंसार बंधनात् | विमुच्यते नरो नित्यं स मे नारायणो हरिः ||"

कहानियाँ और किंवदंतियाँ

नारायणीयम् से जुड़ी कई कहानियाँ और किंवदंतियाँ हैं:

  • एक कथा के अनुसार, भट्टतिरी ने अपने पिता की मृत्यु के बाद नारायणीयम् की रचना की थी। उन्होंने भगवान विष्णु से अपने पिता को नरक से मुक्त करने की प्रार्थना की, और यह माना जाता है कि स्तोत्र के पाठ से उनके पिता की पीड़ा से मुक्ति मिली।
  • एक अन्य कहानी बताती है कि एक बार भट्टतिरी ने त्रावणकोर के राजा अनंतपद्मनाभ से मदद मांगी। राजा ने भट्टतिरी को 200 सैनिकों के साथ एक सेना प्रदान की, जो स्तोत्र के पाठ के दौरान उन्हें सुरक्षा प्रदान करते थे।
  • यह भी कहा जाता है कि नारायणीयम् का पाठ भक्तों को विभिन्न चमत्कारों का अनुभव कराता है, जैसे बीमारी से चिकित्सा, भय से मुक्ति और कठिन समय में सहायता।

व्याख्या और टिप्पणियाँ

नारायणीयम् के कई विद्वानों द्वारा व्याख्या और टिप्पणियाँ की गई हैं, जिनमें शामिल हैं:

नारायणीयम्: एक दिव्य स्तोत्र

  • श्रीकृष्ण सरस्वती: उन्होंने संस्कृत में "नारायणीयम् भाष्य" नामक एक भाष्य लिखा था।
  • रामचंद्र सुधाकर: उन्होंने नारायणीयम् का हिंदी में अनुवाद और व्याख्या "योगवासिष्ठ रत्नाकरम" नामक एक पुस्तक में की थी।
  • श्रीमुनि: उन्होंने नारायणीयम् के चयनित श्लोकों पर "नारायणीयम् सर्वस्व" नामक एक टिप्पणी लिखी थी।

दार्शनिक सिद्धांत

नारायणीयम् अध्वैत वेदांत दर्शन के सिद्धांतों पर आधारित है, जो भगवान को सर्वोच्च वास्तविकता और सभी प्राणियों की आत्मा मानता है। स्तोत्र में भगवान विष्णु को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ रूप में वर्णित किया गया है।

आध्यात्मिक अभ्यास

नारायणीयम् का नियमित रूप से पाठ करना आध्यात्मिक विकास के लिए एक शक्तिशाली अभ्यास माना जाता है। भक्त अक्सर भगवान विष्णु के चिंतन पर ध्यान केंद्रित करते हुए स्तोत्र का पाठ करते हैं। नियमित पाठ से भक्तों को भगवान के साथ एकता की भावना प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

सामाजिक प्रभाव

नारायणीयम् ने भारतीय समाज पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। यह वैष्णव संप्रदाय का एक केंद्रीय स्तोत्र बन गया है, और इसका नियमित रूप से मंदिरों, मठों और घरों में पाठ किया जाता है। स्तोत्र ने भगवान विष्णु की भक्ति को बढ़ावा दिया है और भक्तों को जीवन में धर्म, ज्ञान और भक्ति का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया है।

निष्कर्ष

नारायणीयम् एक पवित्र और प्रेरक स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करता है। इसकी दार्शनिक गहराई, साहित्यिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शक्ति ने सदियों से भक्तों को आकर्षित किया है। नियमित रूप से नारायणीयम् का पाठ करना भक्तों को भगवान के साथ एकता का अनुभव करने, आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने और मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने में मदद करता है।

नारायणीयम् (संस्कृत में)

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् |
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ||

अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड नायक राज राजेश्वर |
अनन्त कोटि सूर्यप्रभमण्डलाभास्वरम् ||

नारायणीयम्: एक दिव्य स्तोत्र

यस्य स्मरण मात्रेण जन्मसंसार बंधनात् |
विमुच्यते नरो नित्यं स मे नारायणो हरिः ||

हरिः ॐ ब्रह्मा हरिः इन्द्रः हरिः सोमो हरिः पिता |
हरिः पुत्रः हरिः बंधुः हरिरेव परायणम् ||

नारायणं नमस्कृत्य पादौ मूर्धन्य धारया |
नारायणेति मन्त्रं जप सर्वार्थ साधकम् ||

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः |

Time:2024-08-17 11:21:45 UTC

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